Wednesday, 2 September 2009

अब तो जानवरों को भी अक्ल हो गयी , इस तरक्की के दौर में आदमी की कहाँ खो गयी

प्यार एक मीठी अनुभूति हैं और भला हो भारतीय सिनेमा जगत का जो उसने इस प्यार को खुलेआम कर दिया . अब यदि किसी के पास प्रेमिकाओं की बृहद सूची नहीं तो उसके प्रतिभासंपन्न होने में तनिक संदेह हैं . ऐसे ही एक संदेह का शिकार हुए हमारे अब्दुल भाई. अब्दुल भाई जब भी अपने दोस्तों के पास पहुँचते तो उनसे उनकी प्रेम चर्चाये सुनने को मिलती. एकदिन तंग आकर अब्दुल भाई पूछ ही बैठे कि ये प्यार क्या होता है , कैसा होता है , कोई खाने की चीज़ है क्या ?


इसपर अब्दुल भाई के मित्रो ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि क्या ऍफ़ एम् रेडियो पर वीरवार सुबह 10 बजे आने वाला कार्यक्रम नहीं सुनते जिसे "म" यानि मैडम प्रस्तुत करती है, बड़ी अच्छी क्लास देती है मैडम. अब्दुल भाई बोले कि अम यारो उस कार्यक्रम को भी सुन लेंगे , जरा तुम लोग़ भी कुछ बयाँ करो , समझायो हमे. दोस्तों ने किताबे खोल दी और शुरू हो गएँ कि ढाई अक्षर प्रेम का और प्यार दीवाना होता है , जब प्यार किसी से होता हैं तो कुछ कुछ होता हैं , दिल चाहता हैं करीब और प्यार हो गया समझो . अब्दुल भाइ ने सुना और विदा ली और उन्हें भी रास्ते में किसी को देखकर ऐसा ही हुआ जो मित्रो ने समझाया था . अगले दिन मैडम का ऍफ़ एम् रेडियो पर कार्यक्रम सुनने के बाद उन्होंने इज़हार ए जज़्बात का इरादा कर लिया और दोस्तों से मशवरा लेने जा पहुंचे . दोस्तों ने कहा मियां मौके का फायदा उठा लो , कल 14 फरवरी लवर्स डे मना लो , एक गुलाब लो और एक गिफ्ट खरीद कर उसको नज़र कर दो , होकर आशिक तुम भी अब नाम ए महुब्बत अमर कर दो . दोस्तों की सलाह लेकर अब्दुल भाई खोये खोये से चल दियें . लगभग चार या पॉँच रोज बाद दोस्तों से फिर मुलाक़ात हुई , जी भर के बात हुई .अब हमारे अब्दुल भाई इत्मिनान  के साथ, अपने मुखडे पर रौनक बिखेरे थे तो दोस्त को हजम न हुआ और उन्होंने वो सवाल दाग ही दिया कि मियां क्या हुआ, सब खैरियत? अब्दुल भाई बोले हाँ बड़ा मसरूफ रहा था . क्योकि वो नहा कर मेरे बिस्तर पर सोयी हैं तो सोचा जरा टहल लूं. बिस्तर की बात सुनते ही दोस्तों के कान खड़े हो जाए और बोले मियां अब्दुल तुम तो बड़े कातील निकले प्यार कि डगर पर , मान जाए गुरु पर ये तो बताओ कि इतनी जल्दी हुआ कैसे ?
अब्दुल भाई अपने आस्तीने चढा के बोले की जल्दी पास जाने पर तो वो बिगड़ ज़ाति और मुझे बहुत दूर तक दौड़ती सो मियां मैंने दूर से ही उसे सीधा गिफ्ट दिखाया , उसने जरा ध्यान दिया तो मैंने इशारा किया , वो मान गयी और धीमे -2 मेरे करीब आई और अपने हाथो से मैंने चाकलेट खिलाई और अपने साथ साथ उसे घर ले आया. दोस्तों कि आँखे फट गयी बोले गजब अब्दुल भाई मान जाए पर घरवाले नहीं चिल्लाये क्या? अब्दुल भाई बोले अमा  अहमको जो हमे पसंद वो सबको पसंद . अब लाजिम सी बात थी कि अब्दुल भाई के दोस्तों को जलन होनी थी सो वो जलन से तमतमाते हुए बोले अमा  मियां सब छोडो और बोलो कि शादी कब मना रहे हो , दावत कहाँ खिला रहे हो और हनीमून में किधर जा रहे हो . अब्दुल भाई आग बबूला होकर बोले , अबे कमजर्फो , मैं भला उससे शादी करूँगा ? दोस्त बोले मियां शादी नहीं करेगो तो तौहीने महुब्बत होगी , प्यार की आखिर मंजिल शादी ही तो हैं ? इसे सुनकर अब्दुल भाई बौखलायें और बरस पड़े कि बेवकूफों अब तो जानवरों को भी अक्ल हो गयी , इस तरक्की के दौर में आदमी की कहाँ खो गयी . महुब्बत माना कि किसी से भी होती हैं पर कब आदमी और कुत्तो की शादी होती हैं . यह कह कर अब्दुल भाई घर की और चल दिए जहाँ उनके बिस्तर पर सोयी हुई थी उनकी प्यारी सी काली पिल्लिया (dogy).

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