कोरे कागज पर मैंने ये जो एक एक लब्ज़ उकेरा हैं !
वो हर एक आह तेरी हैं "शैदाई" और दर्द भी तेरा हैं !
बोली शाम कि मैं क्यूँ हूँ रंगीनियों के लिए बदनाम,
समां हैं न शमा हैं, कुछ बस्तियों में पसरा अँधेरा हैं !
नज़र पड़ते ही मेरी, वो क्यों सहम के सिमट गयी ,
क्या निशां आदमी का एक "अस्मत का लुटेरा" हैं !
उसकी जान निकलने तक लोग तमाशाई बने रहे,
बताएं कोई यहाँ, किस के दिल में खुदा का बसेरा हैं !
किस आरजू में ऐ मेरे यार, तू हर लम्हा रहा गुजार,
अभी कोसो दूर हमसे उन नेक उम्मीदों का सबेरा हैं !
वो हर एक आह तेरी हैं "शैदाई" और दर्द भी तेरा हैं !
बोली शाम कि मैं क्यूँ हूँ रंगीनियों के लिए बदनाम,
समां हैं न शमा हैं, कुछ बस्तियों में पसरा अँधेरा हैं !
नज़र पड़ते ही मेरी, वो क्यों सहम के सिमट गयी ,
क्या निशां आदमी का एक "अस्मत का लुटेरा" हैं !
उसकी जान निकलने तक लोग तमाशाई बने रहे,
बताएं कोई यहाँ, किस के दिल में खुदा का बसेरा हैं !
किस आरजू में ऐ मेरे यार, तू हर लम्हा रहा गुजार,
अभी कोसो दूर हमसे उन नेक उम्मीदों का सबेरा हैं !
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