Friday 4 November, 2011

गरीब की आहो में शायद "शैदाई" वो असर ही नहीं !


खबरे तो बहुत हैं मगर उनकी कोई खबर ही नहीं !

गरीब की आहो में शायद "शैदाई" वो असर ही नहीं !

एक शख्स ने अपने जख्मो को खुला छोड़ रखा है,

मगर वो कैसे देखेगा, जिसके पास, नज़र ही नहीं !

माना तेरे दर्द में वो टीस हैं कि पत्थर भी पिघल जाए,

ये और बात है कि तेरे पास कहने का हुनर ही नहीं !

उस संगदिल की संगपरस्ती भी साफ़ ब्यान होती है,

बगीचे भी बनाये ऐसे, जिनमें दूर तक शज़र ही नहीं !

वो बस एक ख्याल हैं, ये सदा दिल से आई तो होगी,

मगर सच जुबान पर लाने का, उनमें जिगर ही नहीं !

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