Wednesday 24 February, 2010

मैं हर वर्ष यह प्रण कर "शैदाई" होली मनाता हूँ

मैं हर वर्ष यह प्रण कर "शैदाई" होली मनाता हूँ
कि हो ली जितनी हो ली अब बोलूँगा प्रेम की बोली,
चार दिन याद रखता हूँ पांचवे रोज भूल जाता हूँ
मैं हर वर्ष यह प्रण कर होली मनाता हूँ ..................................

आओ रंगों में कुछ इस कद्र हम ऐसे नहा लें
एक दिन के लिए अपनी पहचान छिपा लें
और भला बेहतर क्या हो "शैदाई"
जो आदमी को आदमी हो कर गले लगा लें

1 comment:

  1. आओ रंगों में कुछ इस कद्र हम ऐसे नहा लें
    एक दिन के लिए अपनी पहचान छिपा लें
    और भला बेहतर क्या हो "शैदाई"
    जो आदमी को आदमी हो कर गले लगा लें
    Kya baat hai!Aameen!

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