Friday 23 April, 2010

क्या बदल गया (हास्य)

एकदिन एक सज्जन ने फ़रमाया


जमाना अब बदल गया हैं ,


वो वक़्त पुराना निकल गया हैं ,


ये सब छोडिये , संग कुछ नया जोडिए


और पुरानी बातो से निकल जाईये


अब आप भी थोडा बदल जाईये .


रात भर सोचा हमने और सुबह बदल गये


सज्जन के बगल से हाय कहकर निकल गएँ .


सज्जन ने चश्मा उतारा,


पीछे से आवाज़ दे पुकारा


और बोले की संस्कृति छोड़ दी ,


एकदिन में ही सारी मर्यादाएं तोड़ दी ,


बुजुर्गो का सम्मान भूल जाए हो .


हम मुस्कराए और पूछ बैठे श्रीमान से कि


आप चाहते क्या हैं , आप ही समझाईये,


आखिर क्या बदल गया? हमे भी बताईये .


आदत से लाचार थे हम भी,


और सज्जन भी कोई जबाव न दे सके ,


जब अपनी ही बात का हिसाब न दे सकें ,


हम ही बोल पड़े श्रीमान से कि


अब झूठ ही झूठ बस आप कहिये ,


किसी से न कुछ साफ़ साफ़ कहिये ,


काम निकालने की कला अब सीखिए


जरुरत पड़े तो रोईये और चिखिये,


लाठी को सुबह शाम सलाम कीजिए ,


जो मतलब का हो वो बस काम कीजिए ,


भावनायो को अब सुला दीजिए,


सब रिश्तो को भुला दीजिए ,


सज्जन बड़े प्रशन्न हुए और बोले


बेटा आप तो बड़े ही नवीन हैं ,


मासूम सी सूरत में कमीन हैं ,


अब तो मैं भी समझ गया कि


क्या बदल गया ,


वक़्त बहुत , बहुत और बहुत आगे निकल गया .

2 comments:

  1. सज्जन बड़े प्रशन्न हुए और बोले

    बेटा आप तो बड़े ही नवीन हैं ,

    मासूम सी सूरत में कमीन हैं ,

    अब तो मैं भी समझ गया कि

    क्या बदल गया ,

    वक़्त बहुत , बहुत और बहुत आगे निकल गया
    Aapne to ise 'hasy wyang'kaha...wyang to zaroor hai, kahabhi usee andaz me hai, lekin hai bada gahan....

    ReplyDelete
  2. exceelent

    vikas ji

    isse behatr kataksh nahi ho sakta ..yakinan aapne nichoD ke rakh diya hai

    gahre bhaav or khoobsurat bunaai

    ReplyDelete