Sunday, 2 August 2009
सत्तासीन दलितों का अम्बेडकरवाद या मनुवाद
भारत रत्न बाबा साहिब डॉ० बी आर अम्बेडकर भारतीय इतिहास का एक महान व्यक्तित्व ही नहीं वरन दलितों के भगवान के रूप में जाने जाते हैं। इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि जो डॉ० अंबेडकर ने दलित समाज जिसके अन्दर सैकडो जातीय , एस० सी० एस० टी०, ओ० सी० के नाम से जानी जाती हैं , के कल्याण और भारतीय समाज में उनके भविष्य के लिए एक महान कार्य किया हैं। डॉ० अंबेडकर अब हमारे साथ नहीं किन्तु वो दलितों में आज भी जीवित हैं, एक विचारधारा रूप में जो डॉ . अंबेडकर विचारधारा के नाम से जानी जाती हैं, हमेशा दलितों के बीच रही हैं।
इस तथ्य को झुठलाना असंभव हैं कि डॉ० अंबेडकर विचारधारा को, और उनके द्वारा स्वीकार किये गये बौद्ध धर्मं को भुना कर ही खुद को दलित समाज का हितैषी कहने वाले लोभी सत्ता के मुकाम तक पहुंचे।
मैं डॉ० अंबेडकर विचारधारा को गहराई से नहीं जानता किन्तु उनके दलितों को शिक्षित, संगठित और संघर्षशील होने के साथ साथ जातीवादिता मिटाने और आडम्बर मिटाने और बौद्ध धरम अपनाने इत्यादि विचार दिए गये जो सर्वविदित हैं।
वर्तमान में सोचना ये हैं कि दलित राजनेता उनकी विचारधारा पर चल रहें हैं या नहीं। सैंकडो दलित जातियों के दम पर सत्ता में आने वाले कितनी दलित जातियों का हित कर रहें हैं, ये पूरा भारतीय समाज जानता हैं, ऐसे में जब दलित नेता ही जातिवादी मानसिकता का शिकार हो कर काम करे तो डॉ० अम्बेडकर की विचारधारा के अनुयायी हैं या सत्तालोलुप , ये अब दलितों को समझ आ रहा हैं। डॉक्टर अम्बेडकर आडम्बरों के विरोधी थे। ऐसे में मूर्तिपूजा के विरोधी भी हुए और आज डॉ० अम्बेडकर को भूल कर उनके स्थान पर खुद की मूर्तियाँ बनाने के पीछे कहीं डॉ० अम्बेडकर साहब का कद दलित समाज में छोटा करना तो नहीं हैं ? संविधान जिसपर लोकतंत्र कि संरचना टिकी हैं, भी बाबा साहब द्वारा ही निर्मित हैं। यदि दलित समाज के नेता लोकतान्त्रिक व्यवस्ताओ और संवैधानिक नियमो के साथ खिलवाड़ करें तो हास्यापद लगता हैं। अक्सर दलित नेताओ को कुछ राजनैतिक दलों के बारे में कहते सुना जाता हैं कि इनकी मानसिकता मनुवादी मानसिकता हैं। पर जब वो दलित नेता उसी मनुवादी समाज द्वारा किये गये कामो का हवाला देकर कहें कि हम भी इनका अनुसरण करेंगे तो ऐसे में ये निर्णय होना जरुरी हैं कि दलित नेताओ किसी मानसिकता पर चल रहें हैं मनुवादी या अम्बेडकरवादी।
अगर अम्बेडकरवाद के साथ दलित नेताओ का चलना संभव नहीं तो फिर दलितों की भावनाओ से खिलवाड़ और ये ढोंग क्यों ?
सबब उसके कतल का कुछ अजीब सा था ,
कि अब महुब्बत फ़र्ज़ पे कुर्बान नहीं होती ,
गिरा बिजलियाँ हुशन की और दाम बना ,
तेरे फन की "शैदाई"यहाँ पहचान नहीं होती ,
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