Sunday, 2 August 2009
एक बिरला मरकर भी मरता नही
रंजो के दौर से "शैदाई" गुजरा हुआ इंसा,
परवाह किसी मातम की करता नही हैं ,
तुम हो कर तमाशाई घर बैठो ऐ यारो ,
रण में उतर कर एक जाबाज़ डरता नही है ,
मैंने अपनी नाकामियों की कभी फिक्र नही की ,
और मैदान में हरने को भी कोई उतरता नही है ,
बेसक ये सांसे नब्ज़ और जिस्म न रहे ,
पर एक बिरला मर कर भी मरता नही हैं ,
जब वक्त हो कोहराम से तकदीर बदलने का ,
अपनी जात पर फक्र करने वाला आराम का करता नही हैं ,
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बड़े शक्ती शाली अल्फाज़ हैं !
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