Saturday, 1 August 2009
विकास ही मुद्दा हैं
विकास ही मुद्दा हैं ,
चुनावों के समीप मुझे अपने नाम पर बड़ा फक्र होता हैं, तरफ़ विकास की ही बातें, हर जुबान पे मेरा ही जिक्र जो होता है,
सत्तासीन और सत्ताहीन दोनों का मुद्दा हैं विकास पर वाकई विकास को वर्तमान विकास देखकर अपना मुद्दा कब्र में दफ़न होता दिखाई देता हैं। संवैधानिक नियमो के आधार पर बनी लोकतंत्र की संरचना को राजतन्त्र में तब्दील हो रहे किले की दीवारों से बाहार लाने की और न्याय की और भ्रस्ट्राचार निवारण की कोई बात नही करता।
विकास होगा और 10 रुपये काम में लगाया जाएगा और 90 खाया जाएगा ,
विकास होगा भ्रस्ट्राचार का भी इससे दिन पर दिन अति आधुनिक और विकसित किया जाएगा , विकास होगा अपराध का ग्राफ कम नही होने दिया जाएगा,
विकास होगा अन्याय और गरीबी और बढेंगे।
विकास होगा राज्यों की सरकारों को जनता पर जुल्म का विकास करने का पुरा मौका देंगे।
विकास होगा बलात्कार और महिला छेड़छाड़ के मामलो में तरक्की लायेंगे।
विकास होगा पूंजीपतियों से कमीशन खा कर, रिज़र्वेशन को ख़त्म करने के लिए सब सरकारी विभागों का निजीकरण करेंगे ।
अहसास कमतरी हैं मुझे, वो खवाब तुम्हारे जो आज तलक अधूरे हैं ,
बाउम्मीद न देखो मुझे ऐ दम से अपने चिराग ऐ वतन जलाने वालो।
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