कुछ उम्दा से "शैदाई" लब्जो की आस में !
निकला हूँ फिर मैं एक गम की तलाश में!
न जाने मुझे अपने फन पर गरूर क्यों हैं,
दर्द मेरा ही नहीं हैं मेरा, जब मेरे पास में !
निकला हूँ फिर मैं एक गम की तलाश में!
न जाने मुझे अपने फन पर गरूर क्यों हैं,
दर्द मेरा ही नहीं हैं मेरा, जब मेरे पास में !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति , आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.