Tuesday, 10 May 2011

क़त्ल कर के बोला वो, कातिल मैं नहीं कोई और हैं !

नेकियों का मजमा लगे जब, ये बेगैरती का वो दौर है !

बेबस यहाँ हर आदमी हैं और तरक्कियों का शोर हैं !

गर बदहवास न होता तो यूँ कर भी जफा न मिलती,

क़त्ल कर के बोला वो, कातिल मैं नहीं कोई और हैं !

कैसे भला महफूज़ रहती जो भी थी तेरी वो अमानते,

जिसे सौंपा हिफाजत का जिम्मा, वही तो बस चोर हैं !

वो जन्नत से उतरा हैं, न "शैदाई"जहन्नुम से आया हैं,

तेरे सामने ही वो, जिसके हाथ में किस्मत की डोर हैं !

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