Sunday, 17 January 2010

भारत का भविष्य बनने से पूर्व ही तनाव का जहर दे देकर हत्या की जाती रहेंगी.

आमिर खान की फिल्म ३ इडियट से मैं पूरी तरह इतिफाक रखता हूँ कि हमको वो करना चाहिए जो हम करना चाहते हैं, जिसके लिए आत्म साक्षात्कार यदि कम आयु में हो जाएँ तो अपना भविष्य निर्धारित करने हेतु सटीक निर्णय कर सकते हैं.  भविष्य हेतु उचित निर्णय करने में चूंक ही कभी-2 उच्च शिक्षा संस्थानों में हमे आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त करने को बाध्य कर देती हैं , मैं खुद को बहुत आत्मबलशाली समझता हूँ कित्नु आत्महत्या करने का बल मुझ में भी नहीं हैं और आत्महत्या से आसान मुझे जीवन से संघर्ष करना लगता हैं.  ऐसे मैं यदि कोई खुद के सपनो को दूसरी राह पर जाते देख , विकल्पों के अभाव में , शिक्षा से असंतुष्ट होकर आत्महत्या करे तो वह कितने आत्मबल वाला होगा? और यदि उसका आत्मबल सही दिशा में प्रयोग होता तो वह अपने मार्ग पर चाल जाने कितने ऊँचे मुकाम को पा जाता . निसंदेश विकल्प यहाँ महत्वपूर्ण  हैं और विकल्प ख़त्म करने का बुरा काम हमारे बड़े कर रहे हैं , वो पैदा होते ही चुनाव कर डालते हैं कि हमारी संतान डॉक्टर बनेगी या इंजिनियर बनेगी या उस क्षेत्र में जाएगी जिसमें अत्यधिक रोजगार के अवसर हैं . यहाँ पर भारत जैसे विकासशील देश जिसकी जनसँख्या प्रगति दिन प्रति दिन विकसित देशो को पीछे छोड़ रही में अत्यधिक चुनौतियाँ  के साथ सीमित क्षेत्रो में ही रोजगार के ऐसे अवसर जिनमें हमारे बड़े हमारा सुखद भविष्य देख रहे हैं.
 एक दलित , एक दरिद्र अथवा सीमित विकल्पों में जीवन यापन करने वाला क्यों न अपने बच्चो के इंजिनियर और डॉक्टर बनाने का सपन देखे और उसके कभी कभी बच्चों की रूचि अथवा क्षमताओ से भिन्न सपनो को पूर्ण करने का कार्य शिक्षा का निजीकरण या व्यवसायीकरण भी कर रहा हैं.  दो दिन पहले मेरे एक साथी अपने बच्चे के किसी विषय पर योग साधना से जुडी तस्वीर इन्टरनेट पर देख रहे थे, पहले भी वो अनेको ऐसे विषयों पर इन्टरनेट का डाटा खंगाल चुके जो आठवी और दसवी के बच्चे पर मुझे बोझ लगता हैं , क्या सम्पूर्ण ज्ञान दसवी कक्षा में दे डालोगे तो फिर उच्च और व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता क्या?

इस समय कंप्यूटर शिक्षा, इन्टरनेट, योग इत्यादि का अतिरिक्त बोझ पाठ्यक्रम में शामिल हुआ हैं जबकि हम 90 के दसक से सुन रहे हैं कि पाठ्यक्रम में सुधार की आवश्यकता हैं, बच्चो पर बोझ ज्यादा हैं , शिक्षा का निजीकरण अपने अपने विधायलयो की साख बनाने की होड़, छोटे बच्चो को भी आत्महत्या जैसा बड़ा काम करने को प्रेरित कर रही हैं.
यदि भारत सरकार का शिक्षा मंत्रालय न जागा तो दसवी कक्षा की शिक्षा तक बिज़नस मैनेजमेंट, मेडिकल और इंजीनियरिंग इत्यादि भी बच्चो पर थोप कर, उनकी भारत का भविष्य बनने से पूर्व ही तनाव का जहर दे देकर हत्या की जाती रहेंगी.

2 comments:

  1. इस समय कंप्यूटर शिक्षा, इन्टरनेट, योग इत्यादि का अतिरिक्त बोझ पाठ्यक्रम में शामिल हुआ हैं जबकि हम 90 के दसक से सुन रहा हूँ कि पाठ्यक्रम में सुधार की आवश्यकता हैं, बच्चो पर बोझ ज्यादा हैं , शिक्षा का निजीकरण अपने अपने विधायलयो की साख बनाने की होड़, छोटे बच्चो को भी आत्महत्या जैसा बड़ा काम करने को प्रेरित कर रही हैं.

    यदि भारत सरकार का शिक्षा मंत्रालय न जागा तो दसवी कक्षा की शिक्षा तक बिज़नस मैनेजमेंट, मेडिकल और इंजीनियरिंग इत्यादि भी बच्चो पर थोप कर, उनकी भारत का भविष्य बनने से पूर्व ही तनाव का जहर दे देकर हत्या की जाती रहेंगी.

    Afsoske saath kahna padta hai,ki,ye sampoorn saty hai...!

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