Tuesday, 18 August 2009
दलित नाम के बगीचें में लगा जातिवादी कीडा
राजनीति में जातिवाद कोई नया नहीं हैं , देश की सबसे पुराने राजनैतिक दल द्वारा इसकी आधरसिला रखी गयीं और जो कमी थी एक दुसरे राजनैतिक दल ने हिन्दू मुस्लिम कार्ड खेल कर पूरा कर दी। जिसका फायदा उस दल ने तो उठाया ही साथ -साथ क्षेत्रीय स्तर के दलों ने भी खूब चाँदी काटी. और पूरा का पूरा ठीकरा मंडल कमंडल के नाम पर स्वर्गीय विश्व नाथ प्रताप सिंह जी पूर्व प्रधानमंत्री भारत सरकार के सर फोड़, उनपर जातिवाद राजनीति का आगाज़ करने का आरोप लगाया दिया गया. वस्तुत जब लोकतंत्र का सुख आम आदमी तक न पहुंचे तो किसी बात का जनतंत्र. जब भारत में सुचना प्रौधोगिकी के युग में जब लोग़ नयी दुनिया का स्वपन देखने लगे तो एक नया दलित ब्राहमण कार्ड खेला गया जिसके बाद महाराष्ट्र का एक क्षेत्रीय दल ने खुल के क्षेत्रीयवाद की बात की जैसा दुसरे चुप-चुप कोई न कोई वाद साथ लेकर, करते आ रहें हैं. जहाँ तक विकास के मुद्दे और जातिवाद से दूर की राजनीति करने वाले एक बड़े दल का सवाल हैं , देखते हैं 2012 के उत्तर प्रदेश के चुनाव में उम्मीदवारों का चयन जातिगत वोट बैंक के आधार पर होगा या उम्मीदवार की काबिलियत पर. अगर वाकई जातिवादी राजनीति का अंत करना हैं तो जातिगत वोट बैंक के आधार पर सीटो का बटवारा न हो. दलित नेत्रत्व जिसको दलित ब्राह्मण कार्ड के बल पर सत्ता मिलने का दावा किया जाता हैं, सत्य में सामूहिक समर्थन के बल पर खडा हुआ किन्तु अपनी विचारधारा भूल कर जेल में डाले जाने वाले बाहुबल संपन्न और धनी उम्मीदवारों के दम पर दिल्ली तक पहुँचने के खवाब देख ही रहा था कि जनता ने बाहुबल और धन दोनों के मुहं पर करारे तमाचो दियें. बचा काम डॉ० अम्बेडकर के उत्तराधिकारी कहलाये जाने वाले डॉ उदित राज की इंडियन जस्टिस पार्टी के जौनपुर सीट से एक दलित उम्मीदवार शहीद बहादुर खटीक की आत्मा जो इन्साफ के लिए तड़प रही हैं , ने कर दियां . वाकई ये सोचने लायक बात हैं की एक आदमी बाबुल जैसे कटीले पेड़ पर लटक के क्यो आत्महत्या करेगा ? कटीली राह पर चल कर आत्महत्या , आदमी का इरादा बदल देने के लिए प्रयाप्त सोच दे देती हैं । खैर ये सब जानते और समझते हैं कि लोकतंत्र का राजतन्त्र में कैसे उपयोग होता हैं? पर अब वर्तमान दलित नेतृत्व के लिए आगे की आसान नही, मान्यवर श्री काशीराम जी ने तरह-तरह के पौधों लगा के उन्हें अम्बेडकरवाद से सींच के दलित नाम का एक बगीचा बनाया था , उसमें भी जातिवाद का कीडा लग चुका हैं, कहीं ये शहीद बहादुर खटीक की आत्मा का श्राप तो नही जो वर्तमान दलित नेतृत्व को पतन के गर्त में ले जा रहा हैं । अब देखना ये है कि नए आन्दोलन की जरुरत का आगाज़ करने वाले डॉ० अम्बेडकर के उत्तराधिकारी जो ८५ देश की आबादी का नेतृत्व चाहतें हैं, दलित नाम के बगीचे में लगा जातिवादी कीडा ख़तम कर उसमें किसानो, मजदूरों और अल्पसंख्यको को मिलाकर, क्या एक नए राजनैतिक युग का आरम्भ कर ख़ुद को बेहतर विकल्प बनने में कामयाब हो पाएंगे? क्या वर्तमान में उनसे बेहतर नया कोई विकल्प नहीं? या कृषि प्रधान देश में 90 रुपए किलो दाल और विकास का मुद्दा सब पर भारी हैं?
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dharm aur jati sabse bada kaaran hai picchdepan, garibi aur apne desh ke is haal ka... dharm humein ek karne ke bajay alag alag samuh khada karti hai...
ReplyDeletemere blog par apne vichaar rakhne ke liye dhanyavaad...
aaj ek naya vichaar rakha hai... "kahin aapka aangan suna to nahi?"... maarg darshan chahunga...
जहाँ भी 'अवसरवाद ' होगा , वहाँ ,ये सवाल उठेगा ही ..राजीव गाँधी इस बात से निपट सकते थे , लेकिन ना तो uniform civil code लागू किया न ही 'reservation' का मामला सुलझाया ..उनके बाद किसी भी सरकार को पूर्ण बहुमत नही मिला ..ये हमारे देशका दुर्भाग्य रहा ..और मिलता भी तो पता नही ,फिर कोई 'बिना रीढ़ की हड्डीवाला ' आ जाता सत्ता पे ..! हमलोग भी तो अपनी आवाज़ एक जूट होके बुलंद नही करते !लोकतंत्र की ताक़त लोगों से है॥! हम 'कोई अन्य हमारे लिए कुछ कर दे' इसी आशामे हाथ पे हाथ धरे रह जाते हैं..क्यों PI Lदाखिल नही करते?
ReplyDeleteअवसरवाद, क्या, इसतरह तो हम आतंक वाद सेभी कभी नही निपट सकते..ये भी तो 'अवसरवाद' ही है॥! जो 'तोह्फ़ा' अंग्रेज़ दे गए...हम उसी को गले लगाये बैठे हैं !
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