Friday, 14 August 2009
अवसरवादी जातिवाद
अक्सर लोग़ ज़ाति के नाम पर रिश्ते बनाते हैं, रिश्ते बनते ही काम बताना शुरू और काम न कर पाए तो रिश्तेदारी ख़तम ,स्वार्थवादी द्रष्टिकोण कदापि जायज़ नहीं ठहराया जा सकता . समाज से अगर लेना हैं तो समाज को देना भी आना चाहिए . अगर हम में समाज को देने कि भावना नहीं हैं तो कम से कम आलोचना करने कि प्रवर्ति से बचा जाये तो बेहतर रहें . व्यक्ति जब समाज को देता हैं तो समाज उसे क्या देता हैं , समाज ने क्या दिया हैं उनलोगों को जिन्होंने समाज को दिया हैं , जहाँ लेना और देना दोनों हो वो समाज कहलाता हैं , कित्नु जहाँ केवल लेने और लेने वाले हो वो भिखारियों का एक दल कहलाता हैं .अगर मैं एक उंगली किसी कि तरफ उठाता हूँ तो तीन उँगलियाँ मेरी तरफ भी होती हैं ऐसे में जब मैं किसी कि आलोचना करता हूँ तो मेरी बातो से कहीं न कहीं मेरा स्वार्थवाद भी झलकता हैं. यदि हमको लगता हैं अब जनता जागरूक हैं तो हमे ये भी समझना चहिये कि जिस को दुसरे कि आलोचना कर समझा रहें हैं वो आपको भी समझ रहा हैं. एक आसान सा उदहारण दूंगा कि हम उम्मीद करते हैं कि हमारा नेता हमारे घर तक आयें, हम पर पैसा खर्च करें चुनाव के वक़्त हमको दारू पिलाये या पैसा बांटे, फिर हम उसको वोट दें, उसका साथ दें . वस्तुत तो आपने अपने वोट बेचे हैं, आपके वोट लेने के लिए उसने पैसा खर्च किया हैं और जो उसने खर्च किया हैं वो वह कमाएगा भी ताकी पुन् आपसे आपका वोट खरीद सके.
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