Sunday, 19 July 2009
लोकतंत्र बनाम राजतन्त्र
वर्तमान समय में लोकतंत्र की शक्ति के बल पर सत्तासीन नेता इसका उपयोग अपना राजतंत्र चलाने में कर रहे हैं। लोकतंत्र को जन जन तक पहुँचाने हेतु सरकारी पदों पर आसीन अधिकारी जिनका काम सत्तासीनों को भारत के संविधान के अधीन कार्य करने हेतु दिशा देना भी हैं, वह आज राजशाही में लिप्त होकर लोकतंत्र को राजतंत्र बनाने में सहायता कर रहे हैं। इनके कर्मो के कारण जरा जरा से कामो को करवाने के लिए न्यायपालिका की मदद लेनी पड़ती हैं। लोकतंत्र जिन चार मजबूत स्तंभों पर टिका हैं, वह लोह्स्तम्भ आज स्वर्नस्तम्भ के रूप में बदल रहें हैं। लोकतंत्र को संभाले रखने के लिए लोह्स्तम्भ जैसी मजबूती स्वर्नस्तम्भ में नहीं होती हैं ।हमारे राजनैतिक दलों का हाल यह हैं कि कोई केवल विकास कि बात करता हैं, अन्याय और अपराध हेतु कानून का प्रयोग कर अपनी छवि ख़राब नही करना चाहता हैं, कोई हिन्दुत्व और मन्दिर मस्जिद के नाम पर सत्ता पाने में लगा हैं तो कोई दलितों के हितों की हिफाजत के नाम पर अपनी अति उच्च राजनैतिक मह्त्वाकान्छा पूरी करने में लगा हैं।कूल मिलाकर कहे तो नेता, अधिकारी और इनके कभी कभी समाज सेवक और एन० जी० ओ ० नाम से पहचाने वाले दलालों ने लोकतंत्र के स्वरुप को बिगाड़कर उनके निज हित साधने वाला बना दिया हैं ।
जन्म से २१ वर्ष तक कठिन परिश्रम करने के बाद एक व्यक्ति डॉक्टर, इंजिनियर और एक अधिकारी होता हैं जो पुरे को जीवन सुखो के साथ जीता हैं , किंतु जन्म से १६ वर्ष तक आनंद पूर्ण जीवन जीने वाला एक मजदूर और एक रिक्शा चालक हो सकता हैं जो पुरे जीवन को कठिन परिश्रम से जीता हैं। मैं यहाँ पढ़े लिखे को एक अनपढ़ के समान नही कह रहा, किंतु लोकतंत्र मैं सब भारत के नागरिक हैं । अगर यहाँ कोई छोटा या बड़ा हैं तो मनुवादी व्यवस्था का अंत कहाँ हुआ हैं। उच्च और निम्न तो आज भी समाज में विद्यमान हैं ।
नौकरी चाहिए तो सिफरिशवाला भी हो और साथ में देने के लिए घूस हो तो नौकरी मिलेगी। छोटे छोटे कामो के लिए पैसा चाहिए। बिल्कुल वैसे ही जैसे राजतंत्र मैं स्वंत्रता हेतु राजा को उसका मनमाना निर्धारित कर देना होता था। पैसा जो देश में मौजूद हैं, वह देश की जनता तक पहुँच नही रहा हैं। दिल्ली से चल कर देश के एक गावं तक पहुँचने में एक रुपये की कीमत दस पैसे रह जाती हैं और ख़ुद को लोकतंत्र का चौथा मजबूत स्तम्भ के रूप में परिभाषित करने वाला इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया विदेश में जमा काले धन को देश में लाने की बात कर रहा हैं । शायद इस बार बँटवारे में चौथे स्तम्भ का भी हिस्सा बने। पहले तो लोकतंत्र के चारो स्तंभों को स्वरुप सुधार जाए, तब देश का पैसा देश में लाने की बात की जाए वरना जहाँ आएगा वही चला जाएगा।किसी शायर ने अर्ज किया हैं--------ये खामोशामिजाजी तुम्हे जीने नही देगीइस दौर में जीना हैं तो कोहराम मचा दो ।
मैं जो लिख रहा हूँ, वह अकेले मेरा दर्द नही हैं। एक अरब से ज्यादा आबादी वाले इस लोकतंत्र में करोडो लोगो का दर्द मुझसे मिलता हैं।
क़तील शिफई साहब ने अर्ज किया था कि...............
सुना राह में रहबार ने किसी को लुट लिया
ये वाकिया तो मेरी दास्ताँ से मिलता हैं।
वह करोडो लो जो लोकतंत्र में राज तंत्र का दंश झेल रहे हैं, वह दलित भी हैं, पिछडे भी, अलपसंख्यक भी, और समान्य ज़ाति के मध्यमवर्गीय एवं गरीब लोग हैं।
किंतु अब सामाजिक अन्याय के लिए और सत्तासीन जो लोकतंत्र को राजतन्त्र बना कर राजशाही में लिप्त अधिकारियों के साथ हमारे अधिकारों को निगल रहे हैं, के विरूद्व एक शीत युद्घ आहवान करने को तैयार हो। तभी लोकतंत्र का सही स्वरुप देखने को मिल सकेगा।
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achhi baat
ReplyDeletesahi baat
युद्ध की तैयारी।
ReplyDeleteबहुत खूब।
वह भी एक ऐसे ही लोकतंत्र के लिए? या कुछ और विकल्पों का लोकतंत्र है आपके मन में।
चलिए इस दिशा में चिंतन शुरू तो हुआ।
स्वागत है आपका।
Loktantr me logon ko hee satark hona hogaa..! Achha likha hai..anek shubhkamnaye!
ReplyDeletehttp://lalilekh.blogspot.com
http://shamasanmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletebat me dam hai.
ReplyDeleteबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeletenarayan narayan
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