Monday, 13 July 2009

नई शुरूवात

मैं , नयी बात के साथ करने एक शुरूवात, आ रहा हूँ मैं लाने सम्पूर्ण जाति को एक साथ, आ रहा हूँ जानता हूँ कुछ मुझसे सहमत न होंगे अपनी उपजाति और गोत्रो के बन्धनों से बाहर, एकमत न होंगे बगैर उनकी परवाह किए , मैं बढा जा रहा हूँ एक-एक को पिरोह के एक माला बनाने, मैं आया रहा हूँ पेड़ की छाव में छोटे से गाव में एक बूढी अम्मा पदने की उम्र में भेड बकरियों के साथ खेलते बच्चे मैले और फटे कपड़ो में लिपटी एक चाची इन सब की इच्छाओं को मिलकर अपनी एक इच्छा इनके उनत्ति के सपनो के sath स्वपन अपना मिला रहा हूँ अपना सर्वस्व इनपे अर्पित करने का धेय ले मैं आ रहा हूँ, मैं आ रहा हूँ जानता हूँ, तुम एक दिन रह न सकोगे यह सामाजिक अन्याय तुम सह न सकोगे उपजाति और गोत्रो के बन्धनों से मुक्त होकर स्वया को एकता की माला में पिरोह कर तुम आओगे वहां, जहां मैं जा रहा हूं मैं , नयी बात के साथ, करने एक शुरूवात आ रहा हूँ मैं लाने सम्पूर्ण जाति को एक साथ आ रहा हूँ

1 comment:

  1. Thanks Moga Ji bahut ache vichar hai apke. ham sirf shabdo se nahi dil se apke sath hai. apse milne ki bahut icha hai. kya pata kab milenge.
    sare khatiko ko ek manch par ki koshish me ek aur khatik.- dr r.k.sonkar

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