Monday, 13 July 2009

समाज चाहता हैं विकास

लिखना हैं इतिहास, तुम्हारी जरुरत हैं समय नहीं अब पास , तुम्हारी जरुरत हैं अधूरे हैं सपन प्यासे हैं नयन मन में अधूरी पड़ी हैं आश् , तुम्हारी जरुरत हैं इक्छा तुम्हारे जैसा होने की तुम से ही लगायें लोग़ तुमको क्यों नहीं अहसास कि तुम्हारी जरुरत हैं एकता की शक्ति ने यहाँ बदली हैं तकदीरें तुम को नही विस्वास, तुम्हारी जरुरत हैं श्रण तुम पर जन्म का, चाहो तो चूका दो समाज चाहता हैं विकास, तुम्हारी जरुरत हैं

जिंदगी में जब वो आख़री मुकाम आएगा ,

सांसो कि डोर थमने से पहले जुबान पे उसका नाम आएगा ,

जिसकी बेपरवाही में हमने उम्र तमाम गुजर दी ,

एक वक़्त उसके लिए भी अहतराम आएगा ,

इस हकीकत को दरकिनार करना मुश्किल हैं ,

सुबह का भुला लौट के घर एक शाम आएगा ,

उस दिन जब हम न रहेंगे ऐ शैदाई ,

समाज के चार कांधो के सिवा भला कौन काम आयेगा

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