Wednesday, 29 July 2009

नही अच्छे

अब निकले कि शैदाई यहाँ आसार नही अच्छे

इस दुनिया में महुब्बत के तलबगार नही अच्छे

वो कतल कर सके न जखम दे सके

उनकी मस्त निगाहों के वार नही अच्छे

हर शाम तनहा और नागँवार गुज़री

ये जो दिन जवानी के चार नही अच्छे

मेरी आह पर शैदाई अगर वाह न निकले

ये आह हैं झूंठी मेरे अस्यार नही अच्छे

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