दौलत ए हुस्न यूँ करके लुटाई जाती हैं ,
ईमान जाता हैं मेरा खुदाई जाती हैं,
हुआ परदे का चलन खाकसार यूँ कि,
अब तो हसीनो की नुमाइश लगायी जाती हैं ,
मादरे हिंद को भी शर्मसार होना पड़ा ,
तहजीबे और विरासते ऐसे भी मिटाई जाती हैं ,
उठकर पूछती हैं हर बार कि शैदाई तू क्या हैं ,
मेरी खुद्दारी जो किसी कोने में सुलाई जाती हैं.
Wednesday, 2 September 2009
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