Wednesday, 2 September 2009

दौलत ए हुस्न यूँ करके लुटाई जाती हैं ,

दौलत ए हुस्न यूँ करके लुटाई जाती हैं ,

ईमान जाता हैं मेरा खुदाई जाती हैं,

हुआ परदे का चलन खाकसार यूँ कि,

अब तो हसीनो की नुमाइश लगायी जाती हैं ,

मादरे हिंद को भी शर्मसार होना पड़ा ,

तहजीबे और विरासते ऐसे भी मिटाई जाती हैं ,

उठकर पूछती हैं हर बार कि शैदाई तू क्या हैं ,

मेरी खुद्दारी  जो किसी कोने में सुलाई जाती हैं.

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