हर शाम बहुत बदनाम है, उनको लगता है मेरे हाथ में भी जाम है,
सूरज को ढकते हुए इस अँधेरे में मैं एक औरत के लिए फ़िक्रबंद हुआ,
जबसे उन्होंने कहा है कि इस देश का हर पुरुष या आदमी तो आम है,
वो भी वक़्त देखा, जब मैं भी अन्ना तू भी अन्ना हुआ सारा देश अन्ना,
भारत में बहरूपियों और भेड़-चाल का भी तो भाई अपना मुकाम है।
करोडो कमाने वाले राज दरबारी "भांड" जबसे हुए है आम "आदमी"
मैंने "आम आदमी" की टोपी लगाये एक "औरत" से पूछ ही लिया,
सबको फ़िक्र है बस आदमी की, कही "आम औरत" का भी नाम है?
बोली "विकास मोघा" तुम्हें तुम्हारी माँ ने पैदा किया और पाला,
तुम अभी समझे ही नहीं औरत का भारत में भला क्या काम है ?
ओह सांस्कृतिक फलसफा यह है, अब मुझे समझ आ गया,
भारत में "औरत" क्यों नहीं, केवल आदमी" ही क्यों आम है ?
सूरज को ढकते हुए इस अँधेरे में मैं एक औरत के लिए फ़िक्रबंद हुआ,
जबसे उन्होंने कहा है कि इस देश का हर पुरुष या आदमी तो आम है,
वो भी वक़्त देखा, जब मैं भी अन्ना तू भी अन्ना हुआ सारा देश अन्ना,
भारत में बहरूपियों और भेड़-चाल का भी तो भाई अपना मुकाम है।
करोडो कमाने वाले राज दरबारी "भांड" जबसे हुए है आम "आदमी"
मैंने "आम आदमी" की टोपी लगाये एक "औरत" से पूछ ही लिया,
सबको फ़िक्र है बस आदमी की, कही "आम औरत" का भी नाम है?
बोली "विकास मोघा" तुम्हें तुम्हारी माँ ने पैदा किया और पाला,
तुम अभी समझे ही नहीं औरत का भारत में भला क्या काम है ?
ओह सांस्कृतिक फलसफा यह है, अब मुझे समझ आ गया,
भारत में "औरत" क्यों नहीं, केवल आदमी" ही क्यों आम है ?