Sunday, 12 January 2014

भारत में "औरत" क्यों नहीं, केवल आदमी" ही क्यों आम है ?

हर शाम बहुत बदनाम है, उनको लगता है मेरे हाथ में भी जाम है,
सूरज को ढकते हुए इस अँधेरे में मैं एक औरत के लिए फ़िक्रबंद हुआ,
जबसे उन्होंने कहा है कि इस देश का हर पुरुष या आदमी तो आम है,
वो भी वक़्त देखा, जब मैं भी अन्ना तू भी अन्ना हुआ सारा देश अन्ना,
भारत में बहरूपियों और भेड़-चाल का भी तो भाई अपना मुकाम है।
करोडो कमाने वाले राज दरबारी "भांड" जबसे हुए है आम "आदमी"
मैंने "आम आदमी" की टोपी लगाये एक "औरत" से पूछ ही लिया,
सबको फ़िक्र है बस आदमी की, कही "आम औरत" का भी नाम है?
बोली "विकास मोघा" तुम्हें तुम्हारी माँ ने पैदा किया और पाला,
तुम अभी समझे ही नहीं औरत का भारत में भला क्या काम है ?
ओह सांस्कृतिक फलसफा यह है, अब मुझे समझ आ गया,
भारत में "औरत" क्यों नहीं, केवल आदमी" ही क्यों आम है ?

Saturday, 25 August 2012

बहुजन समाज और उच्चशिक्षा

 सदियों पहले तथागत बुद्ध ने कहा था, "बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय"! इस पर लोगो की अपनी अपनी राय है ! वर्तमान में बहुजन शब्द से एक बहुत बड़े वंचित और शोषित तबके की पहचान के रूप में प्रयोग में लाया जाता है! तथागत बुद्ध के विचारो का, उनके चिंतन यदि अध्यन किया जाए तो उस समय भी शोषक वर्ग के होने के संकेत मिलते है, संभवत तथागत बुद्ध ने भी बहुजन शब्द का प्रयोग शोषक वर्ग को छोड़ कर ही किया होगा! क्योकि मैं भाषा क्षेत्र में उच्च (विशेष) शिक्षा नहीं रखता सो अपनी समझ से बहुजन का अर्थ बहुत सारे लोगो से लगाता हूँ, सभी लोगो से नहीं ! भारतीय समाज को चार वर्णों में बांटा गया जिसमें आखरी वर्ण सेवको का था, उन सेवको का मनचाहा शोषण हुआ और उन्हें राज, सत्ता, धर्म और शिक्षा आदि से वंचित रखा गया! निसंदेह बहुसंख्यक था, वह आखिरी या चतुर्थ वर्ण ! बहुसंख्यक होना भी शोषक वर्ग के लिए चिंतनीय था सो सेवा के आधार पर विभक्त कर दिया गया या जातियों में बाँट दिया गया ! कही से बहुसंख्यक यदि यह सोच या शिक्षा भी पा गए कि वह संख्या में ज्यादा है, लड़ सकते है तो भी एक कठिन राह थी ! और किसी एकलव्य जैसे वंचित वर्ग के युवक ने यदि शिक्षा ग्रहण करने का प्रयास भी किया तो द्रोणाचार्य ने उनका अंगूठा कांट लिया ! अगर वंचितों और शोषितों को शिक्षा न मिलती तो आज भी उसी सीमित जानकारी के साथ जी रहे होते जो शोषक वर्ग सेवको को मनोवैज्ञानिक रूप से छलने के लिए दिया करता था, और जो लोग शिक्षा से दूर है, वह आज भी दुसरो से मिली सही या गलत शिक्षा पर आधारित होकर जीते हैं! इस आधुनिक युग में इस बात का फक्र भी है कि भारत का पहले सबसे अधिक शिक्षित महान व्यक्तित डॉ० अम्बेडकर इसी बहुजन समाज कहलाने वाले वंचित और शोषित तबके से थे! डॉ० अम्बेडकर को उच्च शिक्षा का अवसर मिला था सो उन्होंने भारतीय समाज के वंचित और शोषित तबके के लिए भारत के संविधान में "अवसर" उपलब्ध कराने के प्राविधान रखे और जितना सरकारी प्रयासों से लाभ हो सकता था, इनसे उतना हुआ भी ! शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्द अधिकार है और सीमित साधनों और संसाधनों वाले बहुजन या वंचित और शोषित समाज के लिए शिक्षा आज भी रोजगार की ओर ले जाने वाले उपाय की तरह हैं, वह शिक्षा के क्षेत्र में उतना ही प्रयास करता है जितने की उसे उसके सीमित आय के स्व्रोतो से अनुमति होती है! यह भी निश्चित है कि यदि उस तबके के लिए संवैधानिक अवसर सुनिश्चित न किये जाते तो वह कठिन परिश्रम से कमाई गयी पूंजी को शिक्षा पर खर्च न करता, इस देश को शिक्षा संपन्न बनाने में यह भी डॉ अम्बेडकर की ही दूरदर्शिता रही थी ! अक्सर लोग पूछते भी है कि बच्चे को अमुक शिक्षा दिलानी है, कितना खर्चा आता है ? वैसे भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत की आबादी के एक तबके के लिए शिक्षा रोजगार का साधन हैं, तभी लोग व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों में लाखो रुपए देकर अपनी संतानों का भविष्य संवार रहे है पर बहुत बड़ी आबादी की संतानों को ऐसे अवसर प्राप्त नहीं हैं और उन्हें अवसर के अभाव में संतोष करना पड़ता हैं ! पिछले दिनों आरक्षण को लेकर एक समाचार चैनल पर चल रही कथित विद्द्वानो की चर्चा में इस बात को उठाया गया कि आरक्षण के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पद भरे है लेकिन द्वितीय और प्रथम क्लास के पद काफी संख्या में रिक्त हैं, ऐसे में वंचित और शोषित तबके को उनकी शिक्षा में इजाफा करना चाहिए और कुछ ने इसे इस तबके का शिक्षा के प्रति लापरवाह होना ठहरा दिया ! हालाँकि उच्च (विशेष) शिक्षा या व्यावसायिक शिक्षा के महत्त्व को दरकिनार नहीं किया जा सकता, शोषित और वंचित तबके को उच्च शिक्षा के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए पर इससे भी इनकार नहीं किया जाना चाहिए कि यह व्यवसायीकरण और भूमंडलीकरण के दौर है, इसका सीधा प्रभाव शिक्षा पर भी पड़ा और उच्च या विशेष शिक्षा महंगी होने के साथ साथ बहुसंख्यक आबादी की पहुँच से दूर हुई हैं ! ऐसे में समानता के संवैधानिक प्राविधानो के दृष्टिगत भारत सरकार को "एक सामान शिक्षा" का कानून बनाने के साथ साथ ऐसी नीतियाँ भी बनानी होंगी जिससे कि उच्च शिक्षा के इक्छुक छात्र विषम आर्थिक परिस्थितियों के चलते, उच्च शिक्षा से वंचित न रहे, तभी समाज के वंचित और शोषित तबका जिसे समाज की मुख्यधारा में लाना सरकार की जिम्मेदारी हैं, भारतीय समाज का संवैधानिक मायनो में हिस्सा बन सकेगा !

Monday, 20 August 2012

गर खुद मैं न होता तो "शैदाई"खुदा नहीं होता !

एक पल भी वो अहसास मुझसे जुदा नहीं होता !
गर खुद मैं न होता तो "शैदाई"खुदा नहीं होता !
शुक्र उसका अता करने वाले की लम्बी कतारे,
और क़र्ज़ आदमी का आदमी से अदा नहीं होता !
कभी हुआ करते थे फकीर, हुए अब कितनेअमीर,
उसके नाम पर हो जो धंधा, कभी मंदा नहीं होता!
खुद ही सवाल करता और ये खुद ही जवाब देता,
इस जहन से आगे "यारो"कोई जहान नहीं होता !

Friday, 22 June 2012

हम मुहब्बत भी करते रहे और कसमों से मुकरते रहे !

हम खुद न बदले मगर, बदलने की आस करते रहे!
दिन जिन्दगी के भी यूहीं, एक एक कर गुजरते रहे!
रस्मों को छोड़ के, बंदिसे तोड़ के, वादें किये लेकीन,
हम मुहब्बत भी करते रहे और कसमों से मुकरते रहे !
ये माना हैं लहू का रंग, एक जैसा ही यहाँ हर एक का,
रंग जाने कहाँ से जात के और मजहब के उभरते रहे !
सवाल जब भी जमीर ने किये, हम जिन्दा ही बुत हो लिए,
"शैदाई" इस तरह से हम है जिए कि हर लम्हा मरते रहे!

Friday, 4 November 2011

उनके पसीने का दरिया भला तुम क्यों बनने दोगे,


किस्सा यूँ कर भी तो 'शैदाई' बयाँ हो सकता हैं !
कि बिसरा हुआ वक़्त भी सायबां हो सकता हैं !
जहन की उलझनों को गर लब्ज़ दे सको, तो दो,
एक ग़ज़ल नयी, एक मिसरा नया हो सकता हैं !
उनके पसीने का दरिया भला तुम क्यों बनने दोगे,
निकल चला तो महल तुम्हारा तबाह हो सकता हैं !
चलिए एक बार फिर से हूँ "दोस्तों" मैं नज़र आपकी,
 मुझ में मेरा बस और बस मेरा, क्या हो सकता हैं !

बताएं कोई यहाँ, किस के दिल में खुदा का बसेरा हैं !

कोरे कागज पर मैंने ये जो एक एक लब्ज़ उकेरा हैं !

वो हर एक आह तेरी हैं "शैदाई" और दर्द भी तेरा हैं !

बोली शाम कि मैं क्यूँ हूँ रंगीनियों के लिए बदनाम,

समां हैं न शमा हैं, कुछ बस्तियों में पसरा अँधेरा हैं !

नज़र पड़ते ही मेरी, वो क्यों सहम के सिमट गयी ,

क्या निशां आदमी का एक "अस्मत का लुटेरा" हैं !

उसकी जान निकलने तक लोग तमाशाई बने रहे,

बताएं कोई यहाँ, किस के दिल में खुदा का बसेरा हैं !

किस आरजू में ऐ मेरे यार, तू हर लम्हा रहा गुजार,

अभी कोसो दूर हमसे उन नेक उम्मीदों का सबेरा हैं !

गरीब की आहो में शायद "शैदाई" वो असर ही नहीं !


खबरे तो बहुत हैं मगर उनकी कोई खबर ही नहीं !

गरीब की आहो में शायद "शैदाई" वो असर ही नहीं !

एक शख्स ने अपने जख्मो को खुला छोड़ रखा है,

मगर वो कैसे देखेगा, जिसके पास, नज़र ही नहीं !

माना तेरे दर्द में वो टीस हैं कि पत्थर भी पिघल जाए,

ये और बात है कि तेरे पास कहने का हुनर ही नहीं !

उस संगदिल की संगपरस्ती भी साफ़ ब्यान होती है,

बगीचे भी बनाये ऐसे, जिनमें दूर तक शज़र ही नहीं !

वो बस एक ख्याल हैं, ये सदा दिल से आई तो होगी,

मगर सच जुबान पर लाने का, उनमें जिगर ही नहीं !