सदियों पहले तथागत बुद्ध ने कहा था, "बहुजन हिताय,
बहुजन सुखाय"! इस पर लोगो की अपनी अपनी राय है ! वर्तमान
में बहुजन शब्द से एक बहुत बड़े वंचित और शोषित तबके की पहचान के रूप में प्रयोग
में लाया जाता है! तथागत बुद्ध के विचारो का, उनके चिंतन यदि अध्यन किया जाए तो उस
समय भी शोषक वर्ग के होने के संकेत मिलते है, संभवत तथागत बुद्ध ने भी बहुजन शब्द
का प्रयोग शोषक वर्ग को छोड़ कर ही किया होगा! क्योकि मैं भाषा क्षेत्र में उच्च
(विशेष) शिक्षा नहीं रखता सो अपनी समझ से बहुजन का अर्थ बहुत सारे लोगो से लगाता
हूँ, सभी लोगो से नहीं ! भारतीय समाज को चार वर्णों में बांटा गया जिसमें आखरी वर्ण सेवको का था, उन सेवको का मनचाहा शोषण हुआ
और उन्हें राज, सत्ता, धर्म और शिक्षा आदि से वंचित रखा
गया! निसंदेह बहुसंख्यक था, वह आखिरी या चतुर्थ वर्ण ! बहुसंख्यक होना भी शोषक वर्ग
के लिए चिंतनीय था सो सेवा के आधार पर विभक्त कर दिया गया या जातियों
में बाँट दिया गया ! कही से बहुसंख्यक यदि यह
सोच या शिक्षा भी पा गए कि वह संख्या में ज्यादा है, लड़ सकते है तो भी एक कठिन
राह थी ! और किसी एकलव्य जैसे वंचित वर्ग के युवक ने यदि शिक्षा ग्रहण करने
का प्रयास भी किया तो द्रोणाचार्य ने उनका अंगूठा कांट लिया ! अगर वंचितों और
शोषितों को शिक्षा न मिलती तो आज भी उसी सीमित जानकारी के साथ जी रहे होते जो शोषक
वर्ग सेवको को मनोवैज्ञानिक रूप से छलने के लिए दिया करता था, और जो लोग शिक्षा
से दूर है, वह आज भी दुसरो से मिली सही या गलत शिक्षा पर आधारित होकर जीते हैं! इस
आधुनिक युग में इस बात का फक्र भी है कि भारत का पहले सबसे अधिक शिक्षित महान व्यक्तित डॉ० अम्बेडकर इसी बहुजन समाज
कहलाने वाले वंचित और शोषित तबके से थे! डॉ० अम्बेडकर को उच्च शिक्षा का अवसर मिला
था सो उन्होंने भारतीय समाज के वंचित और शोषित तबके के लिए भारत के संविधान में
"अवसर" उपलब्ध कराने के प्राविधान रखे और जितना सरकारी प्रयासों से लाभ हो सकता
था, इनसे उतना हुआ भी ! शिक्षा प्रत्येक
व्यक्ति का जन्मसिद्द अधिकार है और सीमित साधनों और संसाधनों वाले बहुजन या वंचित और शोषित समाज के लिए शिक्षा आज
भी रोजगार की ओर ले जाने वाले उपाय की तरह हैं, वह शिक्षा के क्षेत्र में उतना
ही प्रयास करता है जितने की उसे उसके सीमित आय के स्व्रोतो से अनुमति होती है! यह भी निश्चित है कि यदि उस तबके
के लिए संवैधानिक अवसर सुनिश्चित न किये जाते तो वह कठिन परिश्रम
से कमाई गयी पूंजी को शिक्षा पर खर्च न करता, इस देश को शिक्षा संपन्न बनाने में यह
भी डॉ अम्बेडकर की ही दूरदर्शिता रही थी ! अक्सर लोग पूछते भी है कि बच्चे
को अमुक शिक्षा दिलानी है, कितना खर्चा आता है ? वैसे भी इस बात से इनकार नहीं
किया जा सकता कि भारत की आबादी के एक तबके के लिए शिक्षा रोजगार का साधन हैं, तभी
लोग व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों में लाखो रुपए देकर अपनी संतानों का भविष्य संवार
रहे है पर बहुत बड़ी आबादी की संतानों को ऐसे अवसर प्राप्त नहीं हैं और उन्हें अवसर
के अभाव में संतोष करना पड़ता हैं ! पिछले दिनों आरक्षण को लेकर एक समाचार चैनल
पर चल रही कथित विद्द्वानो की चर्चा में इस बात को उठाया गया कि आरक्षण के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पद भरे है लेकिन द्वितीय और प्रथम क्लास
के पद काफी संख्या में रिक्त हैं, ऐसे में वंचित और शोषित तबके को उनकी शिक्षा
में इजाफा करना चाहिए और कुछ ने इसे इस तबके का शिक्षा के प्रति लापरवाह होना ठहरा
दिया ! हालाँकि उच्च (विशेष) शिक्षा या व्यावसायिक शिक्षा के महत्त्व को दरकिनार
नहीं किया जा सकता, शोषित और वंचित तबके को उच्च शिक्षा के प्रति
अधिक संवेदनशील होना चाहिए पर इससे भी इनकार नहीं किया जाना चाहिए कि यह
व्यवसायीकरण और भूमंडलीकरण के दौर है, इसका सीधा प्रभाव
शिक्षा पर भी पड़ा और उच्च या विशेष शिक्षा महंगी होने के साथ साथ बहुसंख्यक आबादी
की पहुँच से दूर हुई हैं ! ऐसे में समानता के संवैधानिक प्राविधानो के दृष्टिगत
भारत सरकार को "एक सामान शिक्षा" का कानून बनाने के साथ साथ ऐसी नीतियाँ भी बनानी
होंगी जिससे कि उच्च शिक्षा के इक्छुक छात्र विषम आर्थिक परिस्थितियों के चलते,
उच्च शिक्षा से वंचित न रहे, तभी समाज के वंचित और शोषित तबका जिसे समाज की
मुख्यधारा में लाना सरकार की जिम्मेदारी हैं, भारतीय समाज का संवैधानिक मायनो में
हिस्सा बन सकेगा !
Saturday 25 August, 2012
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Bada sashakt aalekh hai ye!
ReplyDeleteShukriya
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