Thursday, 27 August 2009
संघे शरणम् गच्छामि
मैं यहाँ उस वक़्त की बात करूँगा कि जब भारत आज़ादी के समीप था और इसके लोकतान्त्रिक राष्ट्र बनने की भी चर्चाये गर्म थी, शिक्षित लोग़ समझ रहे थे कि आने वाला समय में जन समर्थन अर्थात वोट द्वारा राजा निर्धारित होगा। उस समय ही कुराफाती सोच और स्वार्थो का जन्म हो चूका था, आज़ादी की लडाई जिस सामूहिक सहयोग, सर्वजातीय, सर्वधर्मीय समर्थन के बल पर एक सोच , एक विचार और एकता के साथ लड़ी गयी , वो लोकतंत्र में निज स्वार्थो तक सीमित हो गयी । हिन्दू मुस्लिम धर्मो में बाँटने का खेल हुआ , कुछ शिक्षित लोग़ अपना-अपना इतिहास लिखने लगे ताकि अपनी ज़ाति और धर्म विशेष को अपनी छोटे स्तर की सोच के साथ भारत के भावुक लोगो को भ्रमित कर राजसत्ता में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के सपने पूरा कर सकें और जो महात्मा गाँधी की तरह बड़ा सोच सकते थे, दूरदर्शिता रखते थे , भारत की सत्ता पर काबिज़ हुए। बाबा साहब ने लोगो को समझाया किन्तु निज स्वार्थ में लगे लोग उनकी दूरदर्शी सोच को न समझ अपना-अपना भला एवं अपने-अपने कुनबे या परिवार तक सीमित हो गएँ। लोकतंत्र जब बनाया जा रहा था, इसका उद्देश्य भी साफ़ था कि जो पिछडे हुए हैं, सत्ता हासिल करे। और अपना सामाजिक एवं आर्थिक विकास करें। यहाँ ये भी समझना जरुरी हैं कि एक राजनैतिक परिवार का कौन सा विकास नहीं हुआ जो उसे बार बार सत्ता चाहिए? गांधीवादी विचारधारा सत्य में सत्ता प्राप्ति के लिए सबसे सफल विचारधारा भी हैं, जिसपर चल कर नेल्सल मंडेला दक्षिणी अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। भले ही अन्दर जो रहा लेकिन बाहर से गांधीवाद धर्मनिरपेक्ष , अजातिगत नज़र आया। मंडेला ने किसी ज़ाति और किसी धर्म की लड़ाई नहीं लड़ी वरन अनेक धर्मो , अनेक जातियों के काले अश्वेत लोगो की समस्याओ को मुद्दा बनाया और अफ्रीका का राष्ट्रपति बन कर अशेवत लोगो की विश्व जगत में हर क्षेत्र में भागीदारी सुनिश्रित करा, एक इतिहास लिखा। एकता तो अश्वेत लोगो की थी और सोच मंडेला की थी, तरीका सामाजिक राजनीति था और विकास उन काले अश्वेत लोगो का हुआ था जो एक हुए। राजनीति में एकता के बल पर और विकास का इससे बड़ा कोई उदहारण नहीं।
सोवियत संघ रूस को कौन नहीं जानता ? गणराज्य एकता के बल पर विश्व का सबसे शक्तिशाली कम्युनिस्ट विचारधारा वाला संघीय देश रहा और अमेरिका ने कम्युनिस्ट एकता को ज़ाति धर्म और छोटी स्वार्थी सोचो को डाल, सोवियत संघ को तोड़ दिया। रूस की हालत सब जानते हैं किन्तु जो सोवियत संघ को तोड़ कर या एकता को तोड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश किये थे। हालात उनके भी दयनीय हैं , पहले से ख़राब हैं। भगवान् गौतम बुद्ध ने कहा था कि संघे शरणम् गच्छामि। डॉ भीम राव अम्बेडकर ने भी कहा था की शिक्षित बनो , संगठित रहो, और संघर्ष करो। राजनीति ही हर विकास की कुंजी हैं। लोकतंत्र की सोच के साथ जन संगठन क्या संभव नही कर सकता?
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बिलकुल सही फ़रमाया ज़नाब आपने.
ReplyDeleteलोकतंत्र की शक्ती लोग होते हैं ...संघटित लोग ..विघटित नही ...! बेहद सही कहा आपने ..! और हमारा देश इस शक्ती की ओर दुर्लक्ष कर रहा है ,ये भी सत्य है ..लोग दुर्लक्ष कर रहे हैं ..एक blame game चलता है ,लेकिन हम अपने आपसे कुछ निर्णायक क़दम नही उठाते ..!
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