Monday, 13 July 2009

अस्तित्व

जमीं को देखता हूँ ढूंढ़ता हूँ एक टुकुदे में अपना अस्तित्व
आसमान को देखता हूँ ढूंढ़ता हूँ एक सितारे में अपना अस्तित्व
समंदर को देखता हूँ ढूंढ़ता हूँ चंद लहरों में अपना अस्तित्व
अग्नि के रुद्र रूप को देखता हूँ ढूंढ़ता हूँ चंद लपटों में अपना अस्तित्व
हवा को देखता हूँ ढूंढ़ता हूँ चंद झोंको में अपना अस्तित्व
किन्तु मैं तो हूँ, तो मेरा अस्तित्व भी हैं फिर क्यों ........ये मुझे दिखाई नहीं देता
शायद मेरी आँखों पर हैं "शैदाई" निराशाओं का आस्तित्व

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