Friday, 24 July 2009

विकल्प

जब सारे विकल्प ख़त्म हो जाते हैं तो एक ही विकल्प बचता हैं। हाँ, एक दम सही समझा हैं कि हाथ में कलम उठाने का । उससे पहले व्यक्ति प्रयास करता हैं । लोगो से बात कर उन्हें समझाता हैं और छोटी मोटी लडाई भी लड़ता हैं। असफल होने के बाद कलम ले कर अपनी भड़ास निकलता हैं। भड़ास निकलते निकलते पता नही कब वो ध्येय बदल जाता हैं जिसपर वो चला था । अब बस दुनिया चंद प्रकाशनों और परिश्रमिक के साथ साथ सरकार से चंद पुरुस्कार तक सीमित हो जाती हैं। फिलहाल में कलम के साथ हूँ कित्नु अपने ध्येय याद रख कर................................. मेरे मन में भी अभी बहुत भडास हैं और उसको निकलने का विकल्प भी मुझे मिल गया हैं । पहले मैं छोटी सी उम्र से मेरे अन्दर जमा हो रही भड़ास निकलना चाहता हूँ, जिस हेतु ये अच्छा तरीका हैं । वस्तुत मन के अन्दर लोकतंत्र के सही रूप की ही सोच हैं। किंतु अर्थ शास्त्र में कहा गया हैं कि एक खोटा सिक्का खरे सिक्के से पहले चलता हैं । अगर ऐसी मानसिकता हो तो विकल्प तलाशने पड़ते हैं। अगर लोग गंदे तालाब में डूब रहे हैं तो अपना दामन मैला कर उन्हें बचाने के सिवा क्या दूसरा भी विकल्प हो सकता हैं ? क्या वर्तमान प्रणाली में एक हेलीकॉप्टर की मदद से रस्शा डाल कर करोडो लोगो को बचाया जा सकता हैं? जैसी परिस्थितिया हैं उन्ही के अनुरूप विकल्प तलाशना ज्यादा बेहतर हैं। वफ़ा बहुत उनसे निभा ली हमने अब बस की दौलत कमा ली हमने उन्हें कब क़द्र रही थी हमारी शैदाई यूँ तो एक उमर साथ गवां ली हमने

1 comment:

  1. "Baagwaanee" blogpe comment ke liye dhanywad..!
    Sahee kaha...qalam uthana, ek aakharee vikalp rah jata hai..basharte, ki, use samajha ya padha jaay...! Samwad behad zarooree hota hai...!

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